Wednesday, February 11, 2009

एक हज़ार कवितायेँ

एक हज़ार कवितायेँ मेरी
सभी तुम्हें बुलाती हैं
तुम नही आती हो
यह कितना शोर मचाती हैं
ऐतराज़ तुम्हें भला इन से क्या?
क्या यह तुम्हें अब भी मेरी याद दिलाती हैं?

Monday, February 09, 2009

एक बार

बहार आएगी फिर
तबियत से एक बार, खिड़की खोल कर तोह देखो

रास्ते हैं जाते मंजिल की ही तरफ़
घुमते मोड़ से निगाहें, हटाकर तोह देखो

खूबसूरती है तुम में किसी रौशनी सी
आइने में हल्का सा, मुस्कुरा कर तोह देखो

आज का यह शामियाना बंधा है सिर्फ़ तुम्हारे लिए
अंधेरे से निकल, रौशनी में आकर तोह देखो

एक तुम ही हो तुम्हारे जैसी
ख़ुद को भीड़ से, ज़रा हटाकर तोह देखो

खुदा भी चौक जाएगा, हक्का-बक्का रह जाएगा
अपनी बुलंद आवाज़, एक बार उठाकर तोह देखो
"I’ve always thought that a feeling which changes never existed in the first place."

Friday, January 23, 2009

बता
उठा भाला
तोड़ दे ताला
देखेंगे जो होगा
साला...
क्यूँ जकडा है
किसने तुझे पकड़ा है
बाहर निकल
बता...
भागने का जिगर है तोह
रुकने वाला कमज़ोर नही तोह
हो जा तैयार
बता...
Let them call you freaky
Be a little crazy
Live on the edge, dime and dirty
No one can take you
Shake you
Break you
Go ahead...be a star
बता...
आग है अन्दर क्या?
खामोश दफ़न अन्दर क्या?
उसे भड़का
थोड़ा और...
चल दिखा...
बता...
होश...भूल जा
जा जा...
जा जा...
जा...
Be a star
बता...

Tuesday, January 20, 2009

टूटी तकदीर
बिखरती तस्वीर
कांच से जस्बात
और यह अमीर…

मैं ले आया फिर भी
मैं छीन लाया फिर भी
थोडी सी फिरनी और साथ
एक कटोरी खीर

फिक्रें हवा हुई
जब साथ तू हुई
मैं भूल गया सारे सच
और चल पड़ा बेहिचक

जैसे फटी जेब और एक फ़कीर

टूटी तकदीर
बिखरती तस्वीर
कांच से जस्बात
और यह अमीर…

Monday, January 19, 2009

All Mixed Up by Red House Painters

she shadows me in the mirror
she never leaves on the light
and some things that i've said to her
they just dont seem to bite

it's all mixed up

she tricks me into thinking
that i cant believe my eyes
that i wait for her forever
but she never does arrive

it's all mixed up

she said leave it all to me,everything will be allright
she said leave it all to me,everything will be all right

she's always out making pictures
she's always out making scenes,
she's always out the window
when it comes to making dreams

Tuesday, January 06, 2009

I am sad that I am sad
But I am happy that she is happy

In total disarray is everything
The rock hit about everything
I fell on the ground, holding a beam that was falling too
Why should I care about you?

Silence spoke in just two words
People got busy with what they meant
I told them, she’s talking about an old friend
And that she is sad, but she is happy too

Thursday, December 25, 2008

कैफियत

शोर युहीं न परिंदों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शेहेर से आया होगा

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तोह था
जिस्म जल जायेंगे जब सर पर ना साया होगा

बानिये जश्न बारा ने ये सोचा भी नही
किसने काटों को लहू अपना पिलाया होगा

अपने जंगल से जो घबराकर उडे थे प्यासे
हर सराब उनको समंदर नज़र आया होगा

बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी
सोचता है के वोह जंगल तोह पराया होगा

शोर युहीं न परिनों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शेहेर से आया होगा

Tuesday, December 16, 2008

क्या मैं अब भी अटका हूँ
उन धागों में जो अब सिर्फ़ उलझाते हैं
उन घरों में जहाँ अब न कोई मेहमान आते हैं
उन वादिओं में जहाँ से हवा भी रुक्सत है
उन ख्वाबों में जो सोये पड़े हैं
उन बादलों में जो अब सूख चुके हैं
उन रोशनियों में जहाँ अँधेरा बसता है
उन यादों में जिन्हें भूलना अब मुमकिन सा लगता है...

उन जिंदगियों में जो आखरी सासें लेना नही चाहती
उन छतों पर जहाँ से बरसाती नही जाती
उन गली के खेलों में जहाँ हारना माफ़ है
उन लोरियों में जहाँ मेरे बचपन की नींद दफ़न है
उन नज्मों में जहाँ इत्तेफाक से सब कुछ अब भी है
लव्जों के असर में ही सही...जहाँ इंसान अब भी इंसान लगता है...

Friday, December 12, 2008

करो ना मैखाने बंद
सुबह अब भी रात जैसी है
दिखती उजली, मगर अब भी गहरी है

सितमगर सो रहे हैं
हमारे बहकने तक तैयार हो जायेंगे
फिर भीड़ में चले हम, आम हो जायेंगे

रोक दो इस तमाशे को अब
कुछ तो लिहाज करो खूबसूरती का
तो क्या हुआ के आज है
वो लिबाज किसी बूढी का
By Mary Frye (1932)

Do not stand at my grave and weep,
I am not there, I do not sleep.

I am a thousand winds that blow.
I am the diamond glint on snow.
I am the sunlight on ripened grain.
I am the gentle autumn rain.

When you wake in the morning hush,
I am the swift, uplifting rush
Of quiet birds in circling flight.
I am the soft starlight at night.

Do not stand at my grave and weep.
I am not there, I do not sleep.
Do not stand at my grave and cry.
I am not there, I did not die!
मुझे देखकर भी तड़पती नही
यह रूह कैसी

मैंने बनाई थी जो
वोह ज़िन्दगी ये नही

मैं तोह चाहता था एक छत,
भीगी रात की लोह हाथ में लिए
दे दी यह राख की कालीन क्यों मुझे

नाराज़ हो गया है समां भी
और तोह कोई दीखता नही
कमी शायद
मुझ ही में होगी कहीं
मैं कहता था ना
कुछ न होगा इस ज़माने से
क्या करेंगे ये
इनके मस्जिद का चंदा भी तो आता है
इसी मैखाने से

Monday, December 08, 2008

आसमा में उद्द रहा है
तू उच्चाई से डर रहा है
तू एक पंछी है
तू ख़ुद से डर रहा है

ये जहाँ तेरा
आज का ये समां तेरा
ख़ुद पर यकीन कर, एक सिर्फ़ तू नही
उलझन में है, फरिश्तों का भी डेरा

Monday, November 24, 2008

ज़िन्दगी ज़िन्दगी - गुलज़ार

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गयी

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गई,
तू कहाँ खो गई,
तू कहाँ खो गई,
कोई आया नही,
दोपहर हो गई,
कोई आया नही,

ज़िन्दगी ज़िन्दगी..

दिन आए दिन जाए,
सदियाँ भी गिन आए,
सदियाँ रे..
तन्हाई लिपटी है,
लिपटी है सासों की,
रसिया रे..

तेरे बिना बड़ी प्यासी है,
तेरे बिना है प्यासी रे,
नैनो की दो सखियाँ रे,
तनहा रे, में तनहा रे..

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गई..
ज़िन्दगी ज़िन्दगी..

सुबह का कोहरा है,
शाम की धूल है,
तन्हाई है,
रात भी ज़र्द है,
दर्द ही दर्द है,
रुसवाई है,
कैसे कटे साँसे उलझी है,
रातें बड़ी झुलसी झुलसी है,
नैना कोरी सदियाँ रे,
तनहा रे, मैं तनहा रे..

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गई
तू कहाँ खो गई,
कोई आया नही,
दोपहर हो गई,
कोई आया नही..

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गई..
दूर कहीं

गूम हो जाने दो मुझे
दूर कहीं...दूर कहीं...

इन सबसे दूर
मनो जैसे भटका गया हो भूल
दूर कहीं...दूर कहीं...

अब आरजू है यही
मैं और आसमा
न हो उम्मीदें और न हो ख्वाब कोई
मैं ही...मैं ही...

दूर कहीं...दूर कहीं...
Great beauty captures me, but a beauty still greater frees me even from itself.

Saturday, November 08, 2008

रात यूं दिल में तेरी खोयी हु’ई याद आई
इजैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ऐ-नसीम
जैसे बीमार को बे-वजह करार आ जाए

Friday, October 03, 2008


Seasons of the heart

Can one man be blamed for all?

For the autumn, for the winter

And for fall

These Days

These days I mostly think

Am I such a bad person?

For all that she says and thinks

Could there be a valid reason?

Was I inconsiderate?

In all my dealings

Was it that I might have hurt?

More than just a few feelings

Answers meet a few questions

And I gasp for breath

Then behave upon seeing her

Like we have never met

And she calls to tell me

That it isn’t my fault

But then she writes again

To tell me, she was wrong