Thursday, December 25, 2008

कैफियत

शोर युहीं न परिंदों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शेहेर से आया होगा

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तोह था
जिस्म जल जायेंगे जब सर पर ना साया होगा

बानिये जश्न बारा ने ये सोचा भी नही
किसने काटों को लहू अपना पिलाया होगा

अपने जंगल से जो घबराकर उडे थे प्यासे
हर सराब उनको समंदर नज़र आया होगा

बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी
सोचता है के वोह जंगल तोह पराया होगा

शोर युहीं न परिनों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शेहेर से आया होगा

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