करो ना मैखाने बंद
सुबह अब भी रात जैसी है
दिखती उजली, मगर अब भी गहरी है
सितमगर सो रहे हैं
हमारे बहकने तक तैयार हो जायेंगे
फिर भीड़ में चले हम, आम हो जायेंगे
रोक दो इस तमाशे को अब
कुछ तो लिहाज करो खूबसूरती का
तो क्या हुआ के आज है
वो लिबाज किसी बूढी का
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