Friday, December 12, 2008

करो ना मैखाने बंद
सुबह अब भी रात जैसी है
दिखती उजली, मगर अब भी गहरी है

सितमगर सो रहे हैं
हमारे बहकने तक तैयार हो जायेंगे
फिर भीड़ में चले हम, आम हो जायेंगे

रोक दो इस तमाशे को अब
कुछ तो लिहाज करो खूबसूरती का
तो क्या हुआ के आज है
वो लिबाज किसी बूढी का

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