Thursday, December 25, 2008

कैफियत

शोर युहीं न परिंदों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शेहेर से आया होगा

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तोह था
जिस्म जल जायेंगे जब सर पर ना साया होगा

बानिये जश्न बारा ने ये सोचा भी नही
किसने काटों को लहू अपना पिलाया होगा

अपने जंगल से जो घबराकर उडे थे प्यासे
हर सराब उनको समंदर नज़र आया होगा

बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी
सोचता है के वोह जंगल तोह पराया होगा

शोर युहीं न परिनों ने मचाया होगा
कोई जंगल की तरफ़ शेहेर से आया होगा

Tuesday, December 16, 2008

क्या मैं अब भी अटका हूँ
उन धागों में जो अब सिर्फ़ उलझाते हैं
उन घरों में जहाँ अब न कोई मेहमान आते हैं
उन वादिओं में जहाँ से हवा भी रुक्सत है
उन ख्वाबों में जो सोये पड़े हैं
उन बादलों में जो अब सूख चुके हैं
उन रोशनियों में जहाँ अँधेरा बसता है
उन यादों में जिन्हें भूलना अब मुमकिन सा लगता है...

उन जिंदगियों में जो आखरी सासें लेना नही चाहती
उन छतों पर जहाँ से बरसाती नही जाती
उन गली के खेलों में जहाँ हारना माफ़ है
उन लोरियों में जहाँ मेरे बचपन की नींद दफ़न है
उन नज्मों में जहाँ इत्तेफाक से सब कुछ अब भी है
लव्जों के असर में ही सही...जहाँ इंसान अब भी इंसान लगता है...

Friday, December 12, 2008

करो ना मैखाने बंद
सुबह अब भी रात जैसी है
दिखती उजली, मगर अब भी गहरी है

सितमगर सो रहे हैं
हमारे बहकने तक तैयार हो जायेंगे
फिर भीड़ में चले हम, आम हो जायेंगे

रोक दो इस तमाशे को अब
कुछ तो लिहाज करो खूबसूरती का
तो क्या हुआ के आज है
वो लिबाज किसी बूढी का
By Mary Frye (1932)

Do not stand at my grave and weep,
I am not there, I do not sleep.

I am a thousand winds that blow.
I am the diamond glint on snow.
I am the sunlight on ripened grain.
I am the gentle autumn rain.

When you wake in the morning hush,
I am the swift, uplifting rush
Of quiet birds in circling flight.
I am the soft starlight at night.

Do not stand at my grave and weep.
I am not there, I do not sleep.
Do not stand at my grave and cry.
I am not there, I did not die!
मुझे देखकर भी तड़पती नही
यह रूह कैसी

मैंने बनाई थी जो
वोह ज़िन्दगी ये नही

मैं तोह चाहता था एक छत,
भीगी रात की लोह हाथ में लिए
दे दी यह राख की कालीन क्यों मुझे

नाराज़ हो गया है समां भी
और तोह कोई दीखता नही
कमी शायद
मुझ ही में होगी कहीं
मैं कहता था ना
कुछ न होगा इस ज़माने से
क्या करेंगे ये
इनके मस्जिद का चंदा भी तो आता है
इसी मैखाने से

Monday, December 08, 2008

आसमा में उद्द रहा है
तू उच्चाई से डर रहा है
तू एक पंछी है
तू ख़ुद से डर रहा है

ये जहाँ तेरा
आज का ये समां तेरा
ख़ुद पर यकीन कर, एक सिर्फ़ तू नही
उलझन में है, फरिश्तों का भी डेरा