बंद किताब ज़िन्दगी
बंद किताब ज़िन्दगी
देखो तुमने फिर खोल दी
गुलाबों की सूखी पंखुडियां
रखकर तुमने फिर छोड़ दी
उड़ते हैं पन्ने हवा से
अरमानों की खिड़की लगता है तुमने फिर खोल दी
गम ही गम थे दफ़न यहाँ तो
जाने कौनसी ख़ुशी साथ तुमने ढो ली
कहा था यादों का समुन्दर है
देखो साडी अपनी देखो तुमने फिर भिगोली
Friday, January 22, 2010
साये में धुप
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साये में धुप है या धुप में साया
बहुत बार गया वहां, मगर समज मेरे नहीं आया
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कितना भी धुतकारो यह नहीं जाती
शायद मेरी ही तरह, इन यादों को भी कोई लेने नहीं अया
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मांगी थी छत और मिल गया आसमा
और कहते हैं लोग, उसे अभी देना नहीं अया
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हैरत होती है हर एक बात पर
हमे ही शायद अभी सहना नहीं आया
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रुक रुक के चलता है, सबसे डरता है
इस व्यापारी को अभी बिज़नस नहीं आया
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साये में धुप है या धुप में साया
बोहुत बार गया में वहां मगर समज मेरे नहीं आया
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