Thursday, November 12, 2009

सुंदर सी नज्म

मिटटी में मैली हुयी थूक जैसी
रख कर भूली रोटी में बिखरी फफूं जैसी

घिस्से हुए बर्तन पे चढी गहरी कायी जैसी
डालडा के आखरी घोल से बनी दशेरे की मिठाई जैसी

उलटी में गिरे घड़ी किये रुमाल जैसी
पसीने में लिपटे, खास्ते हम्माल जैसी

छिले हुए पैरों के फोडों से बहते पस जैसी
नाली के पास बने बरफ के लडू पे छिडके खस जैसी

जली हुयी चमड़ी की उखड्ती परत जैसी
चने की दाल में गिरी इमारती पर चढी बरत जैसी

हलकी औरत के कपडों से महकते गजरों जैसी
बार बार बदन छुते बदसूरत हिजडों जैसी

सच्चाई है
इस पर भला मैं सुंदर सी नज्म कैसे लिखूं

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