Wednesday, February 11, 2009

एक हज़ार कवितायेँ

एक हज़ार कवितायेँ मेरी
सभी तुम्हें बुलाती हैं
तुम नही आती हो
यह कितना शोर मचाती हैं
ऐतराज़ तुम्हें भला इन से क्या?
क्या यह तुम्हें अब भी मेरी याद दिलाती हैं?

Monday, February 09, 2009

एक बार

बहार आएगी फिर
तबियत से एक बार, खिड़की खोल कर तोह देखो

रास्ते हैं जाते मंजिल की ही तरफ़
घुमते मोड़ से निगाहें, हटाकर तोह देखो

खूबसूरती है तुम में किसी रौशनी सी
आइने में हल्का सा, मुस्कुरा कर तोह देखो

आज का यह शामियाना बंधा है सिर्फ़ तुम्हारे लिए
अंधेरे से निकल, रौशनी में आकर तोह देखो

एक तुम ही हो तुम्हारे जैसी
ख़ुद को भीड़ से, ज़रा हटाकर तोह देखो

खुदा भी चौक जाएगा, हक्का-बक्का रह जाएगा
अपनी बुलंद आवाज़, एक बार उठाकर तोह देखो
"I’ve always thought that a feeling which changes never existed in the first place."