एक हज़ार कवितायेँ
एक हज़ार कवितायेँ मेरी
सभी तुम्हें बुलाती हैं
तुम नही आती हो
यह कितना शोर मचाती हैं
ऐतराज़ तुम्हें भला इन से क्या?
क्या यह तुम्हें अब भी मेरी याद दिलाती हैं?
Wednesday, February 11, 2009
Monday, February 09, 2009
एक बार
बहार आएगी फिर
तबियत से एक बार, खिड़की खोल कर तोह देखो
रास्ते हैं जाते मंजिल की ही तरफ़
घुमते मोड़ से निगाहें, हटाकर तोह देखो
खूबसूरती है तुम में किसी रौशनी सी
आइने में हल्का सा, मुस्कुरा कर तोह देखो
आज का यह शामियाना बंधा है सिर्फ़ तुम्हारे लिए
अंधेरे से निकल, रौशनी में आकर तोह देखो
एक तुम ही हो तुम्हारे जैसी
ख़ुद को भीड़ से, ज़रा हटाकर तोह देखो
खुदा भी चौक जाएगा, हक्का-बक्का रह जाएगा
अपनी बुलंद आवाज़, एक बार उठाकर तोह देखो
बहार आएगी फिर
तबियत से एक बार, खिड़की खोल कर तोह देखो
रास्ते हैं जाते मंजिल की ही तरफ़
घुमते मोड़ से निगाहें, हटाकर तोह देखो
खूबसूरती है तुम में किसी रौशनी सी
आइने में हल्का सा, मुस्कुरा कर तोह देखो
आज का यह शामियाना बंधा है सिर्फ़ तुम्हारे लिए
अंधेरे से निकल, रौशनी में आकर तोह देखो
एक तुम ही हो तुम्हारे जैसी
ख़ुद को भीड़ से, ज़रा हटाकर तोह देखो
खुदा भी चौक जाएगा, हक्का-बक्का रह जाएगा
अपनी बुलंद आवाज़, एक बार उठाकर तोह देखो
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