Monday, November 24, 2008

ज़िन्दगी ज़िन्दगी - गुलज़ार

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गयी

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गई,
तू कहाँ खो गई,
तू कहाँ खो गई,
कोई आया नही,
दोपहर हो गई,
कोई आया नही,

ज़िन्दगी ज़िन्दगी..

दिन आए दिन जाए,
सदियाँ भी गिन आए,
सदियाँ रे..
तन्हाई लिपटी है,
लिपटी है सासों की,
रसिया रे..

तेरे बिना बड़ी प्यासी है,
तेरे बिना है प्यासी रे,
नैनो की दो सखियाँ रे,
तनहा रे, में तनहा रे..

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गई..
ज़िन्दगी ज़िन्दगी..

सुबह का कोहरा है,
शाम की धूल है,
तन्हाई है,
रात भी ज़र्द है,
दर्द ही दर्द है,
रुसवाई है,
कैसे कटे साँसे उलझी है,
रातें बड़ी झुलसी झुलसी है,
नैना कोरी सदियाँ रे,
तनहा रे, मैं तनहा रे..

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गई
तू कहाँ खो गई,
कोई आया नही,
दोपहर हो गई,
कोई आया नही..

ज़िन्दगी ज़िन्दगी,
क्या कमी रह गई,
आँख की कोर में,
क्यों नमी रह गई..
दूर कहीं

गूम हो जाने दो मुझे
दूर कहीं...दूर कहीं...

इन सबसे दूर
मनो जैसे भटका गया हो भूल
दूर कहीं...दूर कहीं...

अब आरजू है यही
मैं और आसमा
न हो उम्मीदें और न हो ख्वाब कोई
मैं ही...मैं ही...

दूर कहीं...दूर कहीं...
Great beauty captures me, but a beauty still greater frees me even from itself.

Saturday, November 08, 2008

रात यूं दिल में तेरी खोयी हु’ई याद आई
इजैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ऐ-नसीम
जैसे बीमार को बे-वजह करार आ जाए