Monday, April 19, 2010

तनहा - जावेद अख्तर

देखिये तो लगता है
ज़िन्दगी की राहों में
एक भीड़ चलती है
सोचिये तो लगता है
भीड़ में है सब तनहा

जितने भी ये रिश्ते हैं
कांच के खिलोने है
पल में टूट सकते हैं
एक पल में हो जाए
कोई जाने कब तनहा

देखिये तो लगता है
जैसे ये जो दुनिया है
कितनी रंगीन महफ़िल है
सोचिये तो लगता है
कितना गम है दुनिया में
कितना ज़ख़्मी हर दिल है
वो जो मुस्कुराते थे
जो किसीको ख़्वाबों में
अपने पास पाते थे
उनकी नींद टूटी है
और हैं वो अब तनहा

Thursday, April 01, 2010

How happy is the blameless vestal's lot!
The world forgetting, by the world forgot।
Eternal sunshine of the spotless mind!
Each prayer accepted, and each wish resigned.